
आज बात एक ऐसे इंसान की जिसके हौसले,जिसके जुनून लोगों को प्रेरणा देते हैं ।ये कहानी है दक्षिण अफ्रीका के एथलीट ऑस्कर पिस्टोरियस की ।बचपन से विकलांग पिस्टोरियस को 2007 के बेइजिंग ओलंपीक में दौड़ के लिए होने वाले क्वालीपाइंग मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए अनुमति मिल गई है।
बिजिंग ओलंपिक के रेस में अगर एक विकलांग,बाकी दूसरे ऐथलीटों को चुनौती देता नजर आये तो चौंकियेगा नहीं । एथलीटों की दुनीया के इस नये सनसनी का नाम है ऑस्कर पिस्टोरियस ।
विकलांग वर्ग में अलग अलग मुकाबले में इनके नाम 100 मीटर,200 मीटर,400 मीटर,के विश्व रिकार्ड दर्ज हैं ।पर सब कुछ इतना आसान नहीं था ।तीन साल पहले तक पिस्टोरियस ने रेस ट्रैक पर कदम तक नहीं रखा था ।संघर्ष, ट्रैक पर सिर्फ एक खास कैटेगरी में कुछ तमगों को अपने नाम करने तक हीं नहीं था ।लड़ाई उससे कहीं बड़ी थी ।लड़ाई उस सोच से थी जो ये आभास दिलाती है कि अपंग होने के बाद ओलंपिक तो दुर कोई भी दौड़ बस एक ख्वाब की मानिंद है ।
पिस्टोरियस ने कृत्तिम पैरों के सहरे चलना सीखा और इसी के सहारे खेलों में अपनी साख भी बनायी ।इतिहास तो रचा लेकिन इसने विवाद भी खड़ा कर दिया ।
पिस्टोरियस ने मैदान के अंदर और बाहर दोनो तरफ लड़ाई लड़ी ।मैदान के अंदर जहां अपने जुनून से कुदरत की कमी को हराया वहीं मैदान के बाहर उन लोगों को हराया जिन्होंने इस ऐथलीट के अपंग होने के कारण उसके कृत्तिम पैरों पर ही सवाल खड़े कर दिए । कहा गया ये कृत्तिम पैर पिस्टोरियस को दुसरे ऐथलीटों के मुकाबले बढ़त दिलाते हैं ।
IAAF ने जून 2007 में अपने नियमों में किसी भी ऐथलीट के तकनीकी उपकरण के उपयोग पर रोक लगा दी ।जुलाई 2007 में रोम के 400 मीटर के मुकाबले को 46.60 सेरेंण्ड में पूरी कर पिस्टोरियस ने दूसरा स्थान हासिल किया,जबकि जीतने वाले ने इस दौड़ को 46.72 सेकेण्ड में पूरी । पर पिस्टोरियस की इस उड़ान पर सवाल उठने लगे ।
IAAF ने इस जाबांज के ट्रैक परर्फामेंस का हाई मोनिटेरिंग कैमरे की मदद से जायजा लिया । फिर शुरू हुआ जांच दर जांच का सिलसीला ।और 14 जनवरी 2008 को IAAF ने पिस्टोरियस को अपने मताहत आयोजित होने वाले तमाम प्रतियोगीताओं के लिए अयोग्य करार दे दिया ।
पिस्टोरियस के लिए ये कुछ ऐसा ही था कि मानो आंखों में पल रहे ख्वाब ने जवां होने को सोचा ही था कि रात का आखिरी पहर बीत गया ।पर शायद बुलंद इरादों की तासीर ही ऐसी होती है कि वो इतनी जल्दी हार नहीं मानता ।वो सपनों को मरने नहीं देता ।
तब पिस्टोरियस ने अप्रैल 2008 में स्विटजरलैंड के लुसान के खेल मामलों की अदालत में अपील की ।
और शुक्रवार को अदालत ने उस हौसले,उस जुनून का सम्मान रखा और पिस्टोरियस को क्लिन चीट दी । IAAF ने आखिरकार अपनी गलती मानी कहा कि पिस्टोरियस क्वालिफांइग मुकाबले में दौड़ सकता है ।
मुमकिन है कि पिस्टोरियस ओलंपीक ना जीत पाये पर उसके बुलंद इरादों की अब तक की कहानी इस मायने में खास है कि ये हौसला देता है तमाम चुनौतियों से लड़ने की,ये हौसला देता है सपनों को हकीकत में बदलने की,ये हौसला देता है जिंदगी को अपने तरीके से जीने की ।
बिजिंग ओलंपिक के रेस में अगर एक विकलांग,बाकी दूसरे ऐथलीटों को चुनौती देता नजर आये तो चौंकियेगा नहीं । एथलीटों की दुनीया के इस नये सनसनी का नाम है ऑस्कर पिस्टोरियस ।
विकलांग वर्ग में अलग अलग मुकाबले में इनके नाम 100 मीटर,200 मीटर,400 मीटर,के विश्व रिकार्ड दर्ज हैं ।पर सब कुछ इतना आसान नहीं था ।तीन साल पहले तक पिस्टोरियस ने रेस ट्रैक पर कदम तक नहीं रखा था ।संघर्ष, ट्रैक पर सिर्फ एक खास कैटेगरी में कुछ तमगों को अपने नाम करने तक हीं नहीं था ।लड़ाई उससे कहीं बड़ी थी ।लड़ाई उस सोच से थी जो ये आभास दिलाती है कि अपंग होने के बाद ओलंपिक तो दुर कोई भी दौड़ बस एक ख्वाब की मानिंद है ।
पिस्टोरियस ने कृत्तिम पैरों के सहरे चलना सीखा और इसी के सहारे खेलों में अपनी साख भी बनायी ।इतिहास तो रचा लेकिन इसने विवाद भी खड़ा कर दिया ।
पिस्टोरियस ने मैदान के अंदर और बाहर दोनो तरफ लड़ाई लड़ी ।मैदान के अंदर जहां अपने जुनून से कुदरत की कमी को हराया वहीं मैदान के बाहर उन लोगों को हराया जिन्होंने इस ऐथलीट के अपंग होने के कारण उसके कृत्तिम पैरों पर ही सवाल खड़े कर दिए । कहा गया ये कृत्तिम पैर पिस्टोरियस को दुसरे ऐथलीटों के मुकाबले बढ़त दिलाते हैं ।
IAAF ने जून 2007 में अपने नियमों में किसी भी ऐथलीट के तकनीकी उपकरण के उपयोग पर रोक लगा दी ।जुलाई 2007 में रोम के 400 मीटर के मुकाबले को 46.60 सेरेंण्ड में पूरी कर पिस्टोरियस ने दूसरा स्थान हासिल किया,जबकि जीतने वाले ने इस दौड़ को 46.72 सेकेण्ड में पूरी । पर पिस्टोरियस की इस उड़ान पर सवाल उठने लगे ।
IAAF ने इस जाबांज के ट्रैक परर्फामेंस का हाई मोनिटेरिंग कैमरे की मदद से जायजा लिया । फिर शुरू हुआ जांच दर जांच का सिलसीला ।और 14 जनवरी 2008 को IAAF ने पिस्टोरियस को अपने मताहत आयोजित होने वाले तमाम प्रतियोगीताओं के लिए अयोग्य करार दे दिया ।
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तब पिस्टोरियस ने अप्रैल 2008 में स्विटजरलैंड के लुसान के खेल मामलों की अदालत में अपील की ।
और शुक्रवार को अदालत ने उस हौसले,उस जुनून का सम्मान रखा और पिस्टोरियस को क्लिन चीट दी । IAAF ने आखिरकार अपनी गलती मानी कहा कि पिस्टोरियस क्वालिफांइग मुकाबले में दौड़ सकता है ।
मुमकिन है कि पिस्टोरियस ओलंपीक ना जीत पाये पर उसके बुलंद इरादों की अब तक की कहानी इस मायने में खास है कि ये हौसला देता है तमाम चुनौतियों से लड़ने की,ये हौसला देता है सपनों को हकीकत में बदलने की,ये हौसला देता है जिंदगी को अपने तरीके से जीने की ।
5 टिप्पणियां:
Very Good. I read your cooments. Excellent. Keep it up. Now I am in Kanyakumari. I shall meet with you in your marraige. Don't forget the cost of Water Pump. I shall never forget.
With best wishes
Yours
Anand Mishra
Show me Km. Gunja's Photo. Eagerly waiting to see her.
Contact with me over phone.
Anand
Nice Sir good read
I like you post
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