गुरुवार, 18 अक्तूबर 2007

गलती कहां हूई

मैंने समझा तु छोटा है,
तु नादान है,
गलतियां गलती से हो जाती होगी,
नही मालूम था,
तूझे सब मालूम है,
तेरा हंसना,तेरा रोना
सब नाटक है,
एक तो गलती,
उस पर दिलेरी,
शायद कमी मेरी थी,
तालीम ही सही न दे सका,
शायद गला तेरा तर हो गया,
पर सीना मेरा छलनी हो गया,
तु भले सुरूर में था,
पर मेरी आखें नम थी,
बावजूद इसके तू नादान है,
तू छोटा है ।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2007

क्या नरेन्द्र मोदी बदल गए हैं



कुछ दिन पहले हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशीप सम्मिट में नरेन्द्र मोदी भी आए। मोदी ने अपने सपनों के गुजरात का जमकर बखान किया। अपने कई उपलब्धियों को गिनाया। अपने लगभग आधे घंटे के भाषण के दौरान न तो उन्होंने मुशर्रफ का नाम लिया, और न ही मुसलमानों का, ना तो हिन्दुत्व की चर्चा की, और न तो राम राज्य का। मोदी ने बात गुजरात प्राइड की ।
इस बार मोदी को सुनकर यही लगा कि क्या यह वही व्यक्ति है जिसने हमारी गंगा जमुनी तहजीब के पाटों को इतना दूर कर दिया कि उसे फिर से पाटना नामुमकिन तो नहीं मुश्किल जरूर है।
मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि जंगल में चुनाव का माहौल है और भेड़िया अपने नथुनों में घास फूस दबाकर भेड़ों के बीच वोट मांगने जाता है और कहता है कि अब मैं संत हो गया हूं, शाकाहारी हो गया हूं।
लेकिन एक दूसरी कहानी भी है कि डाकू रत्नाकर, वाल्मिकी हो गया । और रामायण की रचना कर डाली ।
सचमुच में रत्नाकर, वाल्मिकी बना है या भेड़िये ने नथुनों में घास दबा रखी है, इसका फैसला तो गुजरात की जनता को करना है।
लेकिन एक बात तो तय है कि मोदी ने अपने अक्स को बदलने की कोशिश जरूर की है । मोदी ही नही गोधरा के बाद से अब तक भारत भी बहुत बदल चुका है ।
रामसेतु अब बदन में आग नहीं लगाती,लेकिन पेट की भूख रिलांयश फ्रेश स्टोर में तोड़-फोड़ करती है।
अब गुजरात की जनता तय करे कि माफ करना है या साफ करना है ।

शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

सदाबहार गायक थे किशोर कुमार

किशोर कुमार जितने अच्छे गायक थे उतने ही अच्छे अभिनेता भी थे
मस्ती भरी, शोख़ और खनकदार आवाज़ से दशकों तक हिंदी सिनेमा के पार्श्वगायन में छाए रहे किशोर कुमार को उनकी बीसवीं पुण्यतिथि के मौके पर समूचा संगीत जगत याद कर रहा है.
1950-70 के दशकों में सुप्रसिद्ध गायक मुकेश और मोहम्मद रफ़ी के समकालीन रहे किशोर कुमार को जहां उनके रोमांटिक और दर्द भर गानों के लिए याद किया जाता है तो वहीं वे आज के पॉप और हिप-हॉप जगत में भी वह बराबर लोकप्रिय हैं.
आभास कुमार गांगुली यानी किशोर कुमार का जन्म चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता कुंजालाल गांगुली एक वकील थे. किशोर चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे.
किशोर जब छोटे थे तभी उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार मुम्बई जाकर बतौर अभिनेता स्थापित हो चुके थे. उनके एक और भाई अनूप कुमार भी फ़िल्मों में काम कर रहे थे.
किशोर का भी मन भी बस संगीत और अभिनय में ही रमा रहता था सो उन्होंने भी बालीवुड की राह पकड़ने की ठानी और खिंचे चले आए मुम्बई.
सफ़र
उनको 1948 में बाम्बे टॉकीज़ की फिल्म 'ज़िद्दी' में पहला गाना गाने का मौका मिला. बतौर अभिनेता उनकी पहली फ़िल्म 1951 में फणी मजूमदार की 'आंदोलन' रही. 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोजगार युवक का किरदार निभाया.
बहुत सीरियस क़िस्म के आदमी थे, समझते सब थे लेकिन ज़ाहिर नहीं करते थे. हर बात मज़ाक में उड़ाना, नकलें करना, उछलकूद करना उनकी आदत थी. उनके साथ काम करना खुशनसीबी रही

लता मंगेशकर, प्रसिद्ध पार्श्वगायिका
'न्यू देलही', 'आशा', 'झुमरू', 'हाफ़ टिकट', 'चलती का नाम गाड़ी' उनकी कुछ अहम फ़िल्में रही. लेकिन फ़िल्म 'पड़ोसन' में निभाए गए उनके किरदार को तो भुलाया ही नहीं जा सकता. उन्होंने लगभग 81 फ़िल्मों में अभिनय किया था.
अभिनय तो मस्तमौला किशोर के व्यक्तित्व का सिर्फ़ एक आयाम था. महुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर दा को गायकी में वास्तविक मौक़ा एसडी बर्मन ने दिया. किशोर कुमार ने लगभग 574 फ़िल्मों के लिए गाना गाया था.
बर्मन दा ने उनकी उम्दा गायकी को पहचान कर फ़िल्म 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' में कभी न भूलने वाले गाने गवाए. फ़िल्म डॉन में 'खइके पान बनारस वाला' ने तो किशोर दा को मानो अमर ही कर दिया.
अनोखी प्रतिभा
किशोर कुमार अद्भुद प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने हिंदी के अलावा तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया भाषा में भी गाने गाए.
कुंदन लाल सहगल को गायकी में अपना गुरू मानने वाले किशोर कुमार ने सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिकाओं आशा और लता मंगेशकर के साथ बेहद हिट गाने दिए. लता जी को तो वह बहन मानकर राखी भी बंधवाते थे.
किशोर दा को याद करते हुए लता जी कहती हैं, “ बहुत सीरियस क़िस्म के आदमी थे, समझते सब थे लेकिन ज़ाहिर नहीं करते थे. हर बात मज़ाक में उड़ाना, नकलें करना, उछलकूद करना उनकी आदत थी. उनके साथ काम करना खुशनसीबी रही".
हिंदी पार्श्वगायकों के आज के दौर के कई गायक किशोर दा को अपना आदर्श मानते थे. उनको मलाल है कि वह उनके साथ काम नहीं कर सके. मशहूर गायक अभिजीत के लिए किशोर आज भी जिंदा हैं.
किशोर कुमार को 1969 में फ़िल्म आराधना के लिए बेहतरीन पार्श्रगायकी के लिए फ़िल्म फेयर एवार्ड मिला था. उन्हें गायकी के लिए रिकार्ड आठ बार यह पुरस्कार मिला था.
गायकी के साथ साथ किशोर दा 70 के दशक के बाद निर्देशन में भी हाथ आजमाया और लगभग 12 फिल्में निर्देशित कीं हालांकि इसमें उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी.
आज भले ही किशोर दा को हमारे बीच से गए बीस साल गुजर गए हों लेकिन उनकी समय की सीमा की लांघ कर आज भी उनकी आवाज़ की कशिश सबको दीवाना बनाए हुए है.
साभार------बीबीसी