गुरुवार, 22 मई 2008

यूपीए में सोनिया के चार साल


यूपीए सरकार के चार साल पूरे हो गये ।इन चार सालों में सोनिया गांधी का कद न केवल बढ़ा है बल्कि घटक दलों में उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है ।
सोनिया इस दौरान न केवल काग्रेंस अध्यक्षा बल्कि सरकार के संकटमोचक के रूप में भी दिखाई दीं ।जब पार्टी और आम जनता के हितों की बात आई तो सीधे प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी । सरकार जब तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को सोच रही थी उस समय ने सोनिया ने सरकार तक पार्टी और आम जनता दोनो की मांग पहुंचाई ।लेकिन जब विरोधियों ने सरकार और मनमोहन सिंह पर निशाना साधा तो उसका माकूल जवाब भी दिया । परमाणु करार के मसले पर जब वाम दलों के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी विरोध के सुर सुनाई देने लगे तो वैसे समय में सोनिया मनमोहन सिंह के साथ खड़ी दिखांई दीं ।
सरकार के इन चार सालों में मनमोहन सिंह को विपक्ष के अलावा घर के सदस्यों का भी विरोध झेलना पड़ा ।और ऐसे समय में सोनिया ने साफ किया कि मनमोहन सिंह सरकार के मुखिया हैं और वो उनके हर फैसले में साथ हैं ।
इन चार सालों में कई बार ये सवाल भी उठा कि 7 रेस कोर्स रोड और 10 जनपद में आखिरकार सरकार की कमान किनके हाथ है ।पर हर मौके पर सोनिया ने प्रधानमंत्री और उस कुर्सी की महत्ता को स्थापित करने का काम किया ।
अभी हाल में जब अर्जुन सिंह ने राहुल को प्रधानमंत्री पद के लायक बताया तब एक बार फिर ये लगने लगा कि यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री हाशिए पर खड़े हैं लेकिन तब सोनिया ने न केवल इसे खारिज किया बल्कि पार्टी के अंदर साफ संदेश भी दिया की वो ऐसे किसी बहस को नहीं चाहती ।
मौजुदा अवसरवादी राजनीति के साथ-साथ ये सोनिया के नेतृत्व का भी कमाल था कि शरद पवार जैसे क्षत्रप जो कांग्रेस छोड़ कर गये थे आखिरकार यूपीए के झंडे के नीचे आ खड़े हुए। ये सेनिया का ही नेतृत्व था कि लालू और रामविलास जैसे नेता जो एक दुसरे के विरोधी हैं एक साथ सरकार में शामिल हुए।
लाभ के पद के आरोपों से घिरी सोनिया ने लोकसभा से इस्तीफा देकर फिर संसद पहुंची । ।सोनिया ने नैतिकता के बहाने ही सही लेकिन राजनैतिक विरोधियों को एक बार फिर पटखनी दी ।
जब पार्टी में युवाओं को मौका दिये जाने की बात चल रही थी तो लगा कहानी राहुल गांधी के आसरे ही घुमेगी लेकिन अध्यक्ष का फैसला , मां की ममता पर भारी पड़ा ।और राहुल को सीधे कुर्सी मिलने के बजाय लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए गांव की गलियों में उतरना पड़ा ।
ये चार साल न केवल यूपीए सरकार के हैं बल्कि सोनिया गांधी के नेतृत्व और राजनितीक कौशल के भी चार साल हैं ।जो सरकार के साथ रहते हुए भी आम जनता के लिए सरकार के विरोध में खड़ी दिखाई देती है

शनिवार, 17 मई 2008

हौसलों को सलाम


आज बात एक ऐसे इंसान की जिसके हौसले,जिसके जुनून लोगों को प्रेरणा देते हैं ।ये कहानी है दक्षिण अफ्रीका के एथलीट ऑस्कर पिस्टोरियस की ।बचपन से विकलांग पिस्टोरियस को 2007 के बेइजिंग ओलंपीक में दौड़ के लिए होने वाले क्वालीपाइंग मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए अनुमति मिल गई है।
बिजिंग ओलंपिक के रेस में अगर एक विकलांग,बाकी दूसरे ऐथलीटों को चुनौती देता नजर आये तो चौंकियेगा नहीं । एथलीटों की दुनीया के इस नये सनसनी का नाम है ऑस्कर पिस्टोरियस ।
विकलांग वर्ग में अलग अलग मुकाबले में इनके नाम 100 मीटर,200 मीटर,400 मीटर,के विश्व रिकार्ड दर्ज हैं ।पर सब कुछ इतना आसान नहीं था ।तीन साल पहले तक पिस्टोरियस ने रेस ट्रैक पर कदम तक नहीं रखा था ।संघर्ष, ट्रैक पर सिर्फ एक खास कैटेगरी में कुछ तमगों को अपने नाम करने तक हीं नहीं था ।लड़ाई उससे कहीं बड़ी थी ।लड़ाई उस सोच से थी जो ये आभास दिलाती है कि अपंग होने के बाद ओलंपिक तो दुर कोई भी दौड़ बस एक ख्वाब की मानिंद है ।
पिस्टोरियस ने कृत्तिम पैरों के सहरे चलना सीखा और इसी के सहारे खेलों में अपनी साख भी बनायी ।इतिहास तो रचा लेकिन इसने विवाद भी खड़ा कर दिया ।
पिस्टोरियस ने मैदान के अंदर और बाहर दोनो तरफ लड़ाई लड़ी ।मैदान के अंदर जहां अपने जुनून से कुदरत की कमी को हराया वहीं मैदान के बाहर उन लोगों को हराया जिन्होंने इस ऐथलीट के अपंग होने के कारण उसके कृत्तिम पैरों पर ही सवाल खड़े कर दिए । कहा गया ये कृत्तिम पैर पिस्टोरियस को दुसरे ऐथलीटों के मुकाबले बढ़त दिलाते हैं ।
IAAF ने जून 2007 में अपने नियमों में किसी भी ऐथलीट के तकनीकी उपकरण के उपयोग पर रोक लगा दी ।जुलाई 2007 में रोम के 400 मीटर के मुकाबले को 46.60 सेरेंण्ड में पूरी कर पिस्टोरियस ने दूसरा स्थान हासिल किया,जबकि जीतने वाले ने इस दौड़ को 46.72 सेकेण्ड में पूरी । पर पिस्टोरियस की इस उड़ान पर सवाल उठने लगे ।
IAAF ने इस जाबांज के ट्रैक परर्फामेंस का हाई मोनिटेरिंग कैमरे की मदद से जायजा लिया । फिर शुरू हुआ जांच दर जांच का सिलसीला ।और 14 जनवरी 2008 को IAAF ने पिस्टोरियस को अपने मताहत आयोजित होने वाले तमाम प्रतियोगीताओं के लिए अयोग्य करार दे दिया ।
पिस्टोरियस के लिए ये कुछ ऐसा ही था कि मानो आंखों में पल रहे ख्वाब ने जवां होने को सोचा ही था कि रात का आखिरी पहर बीत गया ।पर शायद बुलंद इरादों की तासीर ही ऐसी होती है कि वो इतनी जल्दी हार नहीं मानता ।वो सपनों को मरने नहीं देता ।
तब पिस्टोरियस ने अप्रैल 2008 में स्विटजरलैंड के लुसान के खेल मामलों की अदालत में अपील की ।
और शुक्रवार को अदालत ने उस हौसले,उस जुनून का सम्मान रखा और पिस्टोरियस को क्लिन चीट दी । IAAF ने आखिरकार अपनी गलती मानी कहा कि पिस्टोरियस क्वालिफांइग मुकाबले में दौड़ सकता है ।
मुमकिन है कि पिस्टोरियस ओलंपीक ना जीत पाये पर उसके बुलंद इरादों की अब तक की कहानी इस मायने में खास है कि ये हौसला देता है तमाम चुनौतियों से लड़ने की,ये हौसला देता है सपनों को हकीकत में बदलने की,ये हौसला देता है जिंदगी को अपने तरीके से जीने की ।

सोमवार, 12 मई 2008

तेरा मेरा रिश्ता क्या है

तेरा मेरा रिश्ता क्या है
ना मुझे मालुम ना तुझे मालूम
पर ढूंढती हैं तुझे, मेरी आंखे
तकती हैं तेरा रास्ता हरदम


तु मुझे पसंद हैं,सच कहुं तो
ये भी ना मालूम
फिर भी ना जाने क्यों
तेरा साथ पसंद हैं मुझे
तेरी शोखी,तेरी अदाएं
प्रभावित नही करती मुझे
फिर भी ना जाने क्यों
मरू में भटकता
मृग बन जाता हुं मैं


तेरा मजाक ही सही
पर किनारों को छू जाता है
तूम बस औरों की तरह हो
फिर भी ना जाने क्यों
तेरा पास से गुजरना
मुझे खास बना जाता है


युं तो,मैं बहुत चौकन्ना हुं
पर जब तुम मुझे कुछ
कह रही होती हो
बस तुम्हें देखता रहता हुं
तेरे शब्द मेरे कानों तक पहुंचते ही नही
बस तेरे होठों को हिलते देखता रहता हुं


तेरे ना होने पर
तेरे होने का मतसब समझ आता है
फीर भी
तेरा मेरा रिश्ता क्या है
ना मुझे मालुम ना तुझे मालूम
पर ढूंढती हैं तुझे, मेरी आंखे
तकती हैं तेरा रास्ता हरदम

शनिवार, 10 मई 2008

आरक्षण की खुशी

लम्बे समय बाद घर बात हुई थी ।कुछ समय की कमी के कारण तो कुछ मन नहीं होता था ।ऑफिस से देर रात घर लौटो, होटल से खाना पैक कराओ और टी.वी. देखते हुए सो जाओ ।सुबह देर से जागो,आनन-फानन में तैयार हो कर दफ्तर पहुंचो और फिर वही कहानी ।
खैर उस दिन घर फोन लगाया तो अम्मा से बात हुई ।अम्मा ने बताया कि गांव से हमारे खेतों में काम करने वाली रजिया बुआ आई है ।बुआ इसलिए की हम सब बच्चे उन्हें बचपन से ही बुआ कहते थे ।रजिया बुआ से दुनिया जहान की बातें हुई ।गांव की,गांव के लोगो की,पुराने किस्सों की, उन किस्सों के नये कोपलों की ।
अब गांव भी पहले जैसा नहीं रहा,कम देर के लिए ही सही बिजली रहती है,कुछ घरों में टी.वी.की आवाजें भी गुंजने लगी है।इन कुछ घरों में उन बाभनों के घर शामिल हैं जो अपनी पुश्तैनी जमीन को बेच कर जी रहे हैं और कुछ उन छोटी जातियों के घर शामिल हैं जिनके बच्चे कम उम्र में ही बड़े होकर पंजाब के खेतों और सूरत के फैक्ट्रियों में कमाने के लिए चले गए थे ।
इस टी.वी. ने भले ही शहरों में अपराध और मानसिक अवसाद को बढ़ावा दिया हो लेकिन गांवों में इसने चाहत और सपनों को एक विस्तार दिया है ।गांव की पगडंडियों पर भी पतलुन की जगह जींस दिखने लगे हैं ।छुप-छुप कर ही सही लड़कियां क्रेजी किया रे........गुनगुनाने लगी हैं ।
खैर रजिया बुआ उस दिन बहुत खुश थी ।पुछने पर कहने लगीं की बिटवा वो दिन गये जब औरतों को जनावर समझा जाता था ।अपनी पूरी जिंदगी चौके-चुल्हे में ही खत्म हो जाती थी ।अब तो हमारा राज आने वाला है ।
मैने कहा कैसे तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ ।
कहने लगीं कि अरे सरकार ने हम लोगो को रिजर्वेशन दे दिया है। तब मेरे समझ में आया कि वो महिला आरक्षण बिल की बात कर रहीं है । मैं बस चुप-चाप सुनता रहा और वो बोलतीं रही, कि बेटा टी.वी. में बता रहे थे कि अब हमलोग के लिए कानून बनाया जा रहा है।कि अब हमलोग चुनाव लड़ सकते हैं ।और अब हम औरतों को ज्यादा मौका भी मिलेगा ।अब हम लोग के पास ज्यादा अधिकार भी होगा ।अब औरतें और भी ज्यादा ताकतवर होगीं ।और भी न जाने क्या-क्या--------------
और अंत में बुआ ने पुछा की बेटा ऐसा होगा ना लेकिन मेरे पास कोई जवाब न था और मैने बिना कुछ बोले फोन बंद कर दिया

गुरुवार, 8 मई 2008

ये आसमां तेरा है

पंख मिल गये तुम्हें,अब आसमान तेरा है
गगन का हर किनारा तेरा है


अपने सपनों को नई उड़ान दो
अपने नाम को नई पहचान दो


तुम्हें बुलंदियों को छुना है
थपेड़ों से लड़ना है
जीवन के इस सफर में
नये मुकामों को गढ़ना है


भूखी आंखें,मुखौटे लगाये चेहरे
हर मोड़ पर मिलेंगें तुम्हें
इन कांटों के बीच
इक नया रास्ता बनाना है


मंजिलें तुम्हें मुबारक हो
पर रास्तों का ख्याल रखना
आस-पास के लोगों
और बातों का ख्याल रखना


गलियां तंग ,रास्ते संकरे
सफर भी लंबा होगा
पर पास की आसान लगती
राहों से बचके रहना


उड़ो खुब उड़ो अब आसमां तेरा है
बस झूठी जिंदगी और
दुसरों के सपनों से बच के रहना