शनिवार, 10 मई 2008

आरक्षण की खुशी

लम्बे समय बाद घर बात हुई थी ।कुछ समय की कमी के कारण तो कुछ मन नहीं होता था ।ऑफिस से देर रात घर लौटो, होटल से खाना पैक कराओ और टी.वी. देखते हुए सो जाओ ।सुबह देर से जागो,आनन-फानन में तैयार हो कर दफ्तर पहुंचो और फिर वही कहानी ।
खैर उस दिन घर फोन लगाया तो अम्मा से बात हुई ।अम्मा ने बताया कि गांव से हमारे खेतों में काम करने वाली रजिया बुआ आई है ।बुआ इसलिए की हम सब बच्चे उन्हें बचपन से ही बुआ कहते थे ।रजिया बुआ से दुनिया जहान की बातें हुई ।गांव की,गांव के लोगो की,पुराने किस्सों की, उन किस्सों के नये कोपलों की ।
अब गांव भी पहले जैसा नहीं रहा,कम देर के लिए ही सही बिजली रहती है,कुछ घरों में टी.वी.की आवाजें भी गुंजने लगी है।इन कुछ घरों में उन बाभनों के घर शामिल हैं जो अपनी पुश्तैनी जमीन को बेच कर जी रहे हैं और कुछ उन छोटी जातियों के घर शामिल हैं जिनके बच्चे कम उम्र में ही बड़े होकर पंजाब के खेतों और सूरत के फैक्ट्रियों में कमाने के लिए चले गए थे ।
इस टी.वी. ने भले ही शहरों में अपराध और मानसिक अवसाद को बढ़ावा दिया हो लेकिन गांवों में इसने चाहत और सपनों को एक विस्तार दिया है ।गांव की पगडंडियों पर भी पतलुन की जगह जींस दिखने लगे हैं ।छुप-छुप कर ही सही लड़कियां क्रेजी किया रे........गुनगुनाने लगी हैं ।
खैर रजिया बुआ उस दिन बहुत खुश थी ।पुछने पर कहने लगीं की बिटवा वो दिन गये जब औरतों को जनावर समझा जाता था ।अपनी पूरी जिंदगी चौके-चुल्हे में ही खत्म हो जाती थी ।अब तो हमारा राज आने वाला है ।
मैने कहा कैसे तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ ।
कहने लगीं कि अरे सरकार ने हम लोगो को रिजर्वेशन दे दिया है। तब मेरे समझ में आया कि वो महिला आरक्षण बिल की बात कर रहीं है । मैं बस चुप-चाप सुनता रहा और वो बोलतीं रही, कि बेटा टी.वी. में बता रहे थे कि अब हमलोग के लिए कानून बनाया जा रहा है।कि अब हमलोग चुनाव लड़ सकते हैं ।और अब हम औरतों को ज्यादा मौका भी मिलेगा ।अब हम लोग के पास ज्यादा अधिकार भी होगा ।अब औरतें और भी ज्यादा ताकतवर होगीं ।और भी न जाने क्या-क्या--------------
और अंत में बुआ ने पुछा की बेटा ऐसा होगा ना लेकिन मेरे पास कोई जवाब न था और मैने बिना कुछ बोले फोन बंद कर दिया

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