तेरा मेरा रिश्ता क्या है
ना मुझे मालुम ना तुझे मालूम
पर ढूंढती हैं तुझे, मेरी आंखे
तकती हैं तेरा रास्ता हरदम
तु मुझे पसंद हैं,सच कहुं तो
ये भी ना मालूम
फिर भी ना जाने क्यों
तेरा साथ पसंद हैं मुझे
तेरी शोखी,तेरी अदाएं
प्रभावित नही करती मुझे
फिर भी ना जाने क्यों
मरू में भटकता
मृग बन जाता हुं मैं
तेरा मजाक ही सही
पर किनारों को छू जाता है
तूम बस औरों की तरह हो
फिर भी ना जाने क्यों
तेरा पास से गुजरना
मुझे खास बना जाता है
युं तो,मैं बहुत चौकन्ना हुं
पर जब तुम मुझे कुछ
कह रही होती हो
बस तुम्हें देखता रहता हुं
तेरे शब्द मेरे कानों तक पहुंचते ही नही
बस तेरे होठों को हिलते देखता रहता हुं
तेरे ना होने पर
तेरे होने का मतसब समझ आता है
फीर भी
तेरा मेरा रिश्ता क्या है
ना मुझे मालुम ना तुझे मालूम
पर ढूंढती हैं तुझे, मेरी आंखे
तकती हैं तेरा रास्ता हरदम
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3 टिप्पणियां:
bahut khoob
चन्दन जी
सुन्दर तथा भावपूर्ण रचना।
बंधु मैं तो ऐसे बेवजह कुछ लिखता नहीं,
लेकिन तेरी दिल से जो दर्द निकली मुझसे देखी नहीं गई,
कविता को पढ़ते ही मेरे हाथ अनायास उठ गए कुछ लिखने को,
पर सोचा लिखा क्या जाए................
फिर मैंने सोचा तुम्हारी कविता पर टिप्पणी कर तेरी उस कविता की तौहीन तो न करूँ........जिसके लिए तेरे दिल आवाज निकली है।...............
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