गुरुवार, 14 अगस्त 2008

बापू की याद

मौसम कुछ बदल रहा है
कांटों की छोड़ो
अब तो फूल चुभ रहा है ।
रंग बिरंगे नजारे हैं
फिर भी,ना जाने क्यों
दिल रो रहा है।
आंखों में हसीन सपने
फिर भी,ना जाने क्यों
डर सा लग रहा है।
दिल्ली,मुंबई,पुणे की
नियोन लाइट में
ना जाने क्यों
यवतमाल दिख रहा है।
पांचसितारा होटलों की
टेबलों पर
सूखी रोटी और प्याज
दिख रहा है।
प्यालों में तो शराब
पर गले में ना जाने क्यों
लहू उतर रहा है

आजादी को 61 साल हो गए
पर ना जाने क्यों
आज भी,हर इंसान
गुलाम दिख रहा है।
कूर्सी के पास
भीड़ बहुत है
लेकिन,आज भी बापू खूब याद आ रहा है ।

1 टिप्पणी:

मधुकर राजपूत ने कहा…

मजमून दमदार है। करुणा है, चिंतन है। आप वापस आएं हम इंतजार में हैं सर। मिलेंगे और इंटरनेट की इस डायरी को कुछ और इबारतों से रंगेंगे। प्रतीक्षा में मधुकर राजपूत।