शुक्रवार, 6 जून 2008

नायक का पोस्टर ब्वॉय हो जाना

भारतीय लोक संस्कृति और गीत-संगीत एक ही नदी के दो किनारे है ।समाज जब-जब जैसे बदला गीत और संगीत की धारा भी उसके अनुसार बदली ।जहां समाज के दर्द,औऱ मजबूरी को गीतों में संजीदगी के साथ उकेरा गया वहीं गीतों के माध्यम से लोंगो के ख्वाब और खूशियों के कई अफसाने लिखे गये । हर काल और समय में समाज ने जिस दौर को भी जिया गीत,संगीत के आसरे उस कहानी को कहता रहा ।पहले लोक गीत और शास्त्रीय संगीत ने खुद को लोगो का अक्स बनाया ।बाद में इसकी ताकत को सेल्युलाइड ने ना केवल पहचाना बल्कि इस विधा का उपयोग भी किया ।ये गीत और समाज के मजबूत रिश्ते ही थे कि गाने ,सिनेमा में अब फिलर के तौर पर नहीं बल्कि इसके आसरे कहानी को नया मोड़ दिया जाने लगा । अब सिनेमा के जरिये सिर्फ गानों को नहीं बल्कि गीतों के जरीये भी रूपहले पर्दे को पहचान मिलने लगी ।जब ये दोतरफा संबंध और मजबूत हुआ,तब सिनेमा संगीत के धुन पर सजे बेहतरीन शब्दों के बूते चौपाल से आगे निकलकर लोगों के बरामदों और आंगन में जगह बनाने कामयाब में हो गया ।और तब इन गीतों को आवाज देने वाले गायकों को भी नायक के तौर पर पहचान मिलने लगी ।रूपहले पर्दे पर जहां मुकेश,रफी,लता,मन्ना डे सरीखे गायक सिनेमा और समाज के बीच पुल की तरह काम कर रहे थे वहीं इससे इतर मौशिकी और मौशिकीकारों की एक दुसरी दुनीया भी अपने तरीके से इस रिश्ते को और मजबूत कर रही थी ।बेगम अख्तर,शमशाद बेगम,बड़े गुलाम अली,मेंहदी हसन कुछ ऐसे नाम रहे जिन्होंने अपने आवाज के जरिये गीतों के इस सुनहरे फलसफे का रूहानी चेहरा दिखाया ।इन्होंने गीत के जरिये लोगो को खुदा से जोड़ा ।गीत इनके लिए हर दौर में खुदा की इबादत रही ।समाज के साथ गीत संगीत ने भी एक लम्बा अर्सा बिताया ।समय के साथ समाज में होने बदलाव को गीतों ने पहचाना और अपने को उसके अनुसार बदला भी ।कुछ बाजार की ताकत और कुछ ढलती उम्र के कारण भी गीतों के इन पुरोधाओं ने नौसिखये लेकिन जोश से लबरेज युवाओं के हाथों में अपनी विरासत सौंपी ।लेकिन अब दौर दुसरा था गाने,आवाज और संगीत से ज्यादा बाजार के आसरे रहने लगा है ।अभिजीत सावंत,हिमेश रेशमिया नायक नहीं बल्कि पोस्टर ब्वाय के तौर पर उभरे ।इनकी आवाज ऑटो से लेकर डिस्कोथेक तक गुंजने लगी है ।लेकिन डिस्कोथेक में नशे में चूर युवाओं के शोर में मध्यम वर्ग का वो नायक ना जाने कहां खो गया है। न जाने क्यों विरासत की डोर टूटती हुई महसुस होती है । लेकिन ऐसे समय में एक बार फिर राजन-साजन मिश्र,छन्नु लाल,अमजद अली खान,लता मंगेशकर जैसे बुढ़े कंधे ही सहारा देते नजर आते हैं ।ऐसे में एक सवाल बारबार कौंधता है कि क्या ये पोस्टर ब्वॉय उस नायक की जगह ले पायेगें ।

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