
इस बार मोदी को सुनकर यही लगा कि क्या यह वही व्यक्ति है जिसने हमारी गंगा जमुनी तहजीब के पाटों को इतना दूर कर दिया कि उसे फिर से पाटना नामुमकिन तो नहीं मुश्किल जरूर है।
मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि जंगल में चुनाव का माहौल है और भेड़िया अपने नथुनों में घास फूस दबाकर भेड़ों के बीच वोट मांगने जाता है और कहता है कि अब मैं संत हो गया हूं, शाकाहारी हो गया हूं।
लेकिन एक दूसरी कहानी भी है कि डाकू रत्नाकर, वाल्मिकी हो गया । और रामायण की रचना कर डाली ।
सचमुच में रत्नाकर, वाल्मिकी बना है या भेड़िये ने नथुनों में घास दबा रखी है, इसका फैसला तो गुजरात की जनता को करना है।
लेकिन एक बात तो तय है कि मोदी ने अपने अक्स को बदलने की कोशिश जरूर की है । मोदी ही नही गोधरा के बाद से अब तक भारत भी बहुत बदल चुका है ।
रामसेतु अब बदन में आग नहीं लगाती,लेकिन पेट की भूख रिलांयश फ्रेश स्टोर में तोड़-फोड़ करती है।
अब गुजरात की जनता तय करे कि माफ करना है या साफ करना है ।
अब गुजरात की जनता तय करे कि माफ करना है या साफ करना है ।
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